मैं एक ज़िल्द हूँ. 
मेरी फ़ितरत है,
किताबों की रक्षा करना, 
मेरा फ़र्ज़ है उसकी सुरक्षा करना. 
मुझे अच्छा लगता है,सुकून मिलता है मुझे. 
हरेक विपत्ति को, पहले मैं झेलता हूँ. 
किताब को, हिफ़ाज़त से रखता हूँ. 
लेकिन अब मैं पुराना हो गया हूँ, 
शायद, गंदा हो गया हूँ मैं. 
मुझे बदलने की बात हो रही है. 
एक नयी ज़िल्द अब उसकी हिफ़ाज़त करेगी. 
तार तार हो गया हूँ मैं, 
फट चुका हूँ, 
फिर भी, अपना फ़र्ज़ निभा रहा हूँ.. 
मुझे उतारा जा रहा है. 
बहुत ही बेरहमी से, 
मुझे अहसास दिलाया जा रहा है, 
कि, अब मैं पुराना हो चुका हूँ. 
अब किताब एक नये लिबास मे है. 
एक रंगीन ज़िल्द, 
एक नया रक्षक, 
एक नया साथ. 
मेरा दर्द किसी ने नही समझा. 
किताब भी बहुत खुश है. 
बहुत भा रहा है उसे, एक नया हमसफ़र.. 
मुझे ले जाया जा रहा है.. फेंकने, 
बहुत ही दूर. 
वहाँ से शायद किताब को देख भी ना सकूँ. 
मुझे रोना आ रहा है, 
अपनी किस्मत पर. 
लेकिन रो नही रहा हूँ.. 
कहीं गीला ना हो जाऊँ, 
कहीं ऐसा ना हो कि,, 
मैं आवर्तीकृत ना हो सकूँ. 
फेंक दिया गया मैं.. 
अब बस इंतज़ार है मुझे. 
एक दिन, फिर से काग़ज़ बनूँगा.. 
हो सकता है, फिर से ज़िल्द बनूँ. 
और फिर एक बार किताब के साथ रह सकूँ. 
कर सकूँ उसकी रक्षा एक बार फिर… 
क्योंकि………….
 मैं एक ज़िल्द हूँ.
