करवटें

यूँ ही करवटें बदलता रहता हूँ.
मैं नींद में भी चलता रहता हूँ..

जब भी तुम चाँद बनकर निकलती हो.
मैं सूरज की तरह ढलता रहता हूँ..

चराग़ बनने का बस इतना ही गम है.
वक़्त के साथ क्यों पिघलता रहता हूँ..

कभी पर्वतों सा गंभीर भी हूँ.
कभी नदियों सा मचलता रहता हूँ..

आँगन में हल्की रोशनी की खातिर.
दीए की तरह हर वक़्त जलता रहता हूँ..

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