कलम के पीछे
कुछ विचार और भावनाएँ शब्दों के रूप में आकार लेते हैं। यह जगह उन क्षणों और अनुभवों को साझा करने का माध्यम है, जहाँ भावनाएँ अपनी गहराई में उतरती हैं और शब्दों के माध्यम से सामने आती हैं।
बहुत याद आती है बातें पुरानी.
भूले ना भूलूँ वो बचपन की बातें.
वो तपती दुपहरी, वो खामोश रातें.
पड़ी है अभी भी, वहीं एक कोने,
टूटे खिलौनों की लंबी बरातें.
हँसी सोचकर खुदपे आती है अब तो,
वो झूठा था राज़ा, वो झूठी थी रानी.
बहुत याद आती है बातें पुरानी.
लड़कपन के दिन भी, क्या थे सुहाने.
वो मीठा बरफ और हज़ारों बहाने.
दबाई थी दाँतों तले ऊँगली सबने,
जहाँ भी गया अपना किस्सा सुनाने.
जीवन का अद्भुत समय जा रहा था,
औरों की ही तरह, मुक़द्दर को ढूंढता.
आया तेरे शहर मैं, तेरे घर को ढूंढता.
वो,जान भी दिया तो महज़ बूँद के लिए.
जो शख़्स यूँ चला था, समंदर को ढूंढता.
अपना किसे कहें समझ में कुछ नही आता.
हर यार मिल रहा यहाँ, खंज़र को ढूंढता.
ताउम्र जो ख़ुदा को कभी मान ना सका.
ना जाने क्यों मिला वो किसी दर को ढूंढता.
जो सब को देखते हों सदा एक नज़र से,
मैं कब से चल रहा, उस नज़र को ढूंढता.
भावनाओं के रंग
भावनाएँ हमेशा शब्दों की ज़रूरत नहीं रखतीं, कभी बस महसूस होना ही काफ़ी होता है।
यह जगह उन्हीं क्षणों की झलक है — जब मन कुछ कहता है, पर आवाज़ नहीं निकलती।
हर विचार एक रंग बनकर उभरता है, और यही रंग मिलकर इस सफ़र को अर्थ देते हैं।
